पूर्णिया, ।जीवन के भागदौड़ और विभिन्न उलझनों के बीच जिन्दगी से परेशान लोगों की मानसिक सेहत लगातार बिगड़ रहा है। ऐसे शिकार लोग राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल के मानसिक विभाग में नियमित रूप से आ रहे हैं। विभागीय रूप से प्राप्त आंकड़े में पिछले तीन माह में 678 मानसिक रोगी देखे गए। इनमें सितम्बर माह मे 228, अक्टूबर माह में 210 और नवम्बर माह में 240 देखा गया है। ऐसे में प्रत्येक दिन औसतन 6 से 8 रोगी मानिसक अवसाद के आ रहे हैं। इस विभाग में कार्यरत मनोचिकित्सकीय सामाजिक कार्यकर्ता ज्वाईनल एबी बताते हैं कि युवाओं में सोचने की बीमारी ज्यादा हो रही है। इसके वजह से युवा डिप्रेशन, चिंता, तनाव आदि से ग्रसित हो रहे हैं। इन परेशानियों में आधे लोगों को सोचने की परेशानी हो रही है तो आधे लोग डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। ऐसे लोगों को समय पर उचित मार्गदर्शन जरूरी है। समय पर मार्गदर्शन से मानसिक परेशानी को दूर किया जा सकता है। उचित मार्गदर्शन से लोगों की परेशानी भी दूर हो रही है। इसलिए मानसिक रूप से परेशान लोगों को समय पर जीएमसीएच के मानसिक केन्द्र जरूर लाएं। क माह में औसतन दो सौ लोग मानसिक रूप से बीमार होकर दिखाने के लिए आते हैं। इनमें लगभग 30 लोग नशा के शिकार होते हैं। इन नशा में 20 के लगभग स्मैक का सेवन करते हैं तो 5 लोग अल्कोहल और 5 लोग गांजा के शिकार आते हैं। ज्यादातर युवा स्मैक का सेवन करने लगे हैं। ऐसे युवा को काउंसिलिंग और निगरानी जरूरी है। इस परेशानी में बच्चें भी शामिल है। कम उम्र में बच्चों को हॉस्टल वगैरह में डाल रहे हैं। यहां से भी बच्चे किसी न किसी अवसाद के शिकार हो रहे हैं।
-काउंसिलिंग के जरिए रोगी को ठीक किया जा सकता :
राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल के मानसिक विभाग में कार्यरत मनोचिकित्सकीय सामाजिक कार्यकर्ता ज्वाईनल एबी बताते हैं कि यदि किसी युवा या फिर बच्चे मानसिक रूप से परेशानी से घिर गए हैं तो निश्चित रूप से उनसे बात करें। उनकी परेशानी को समझे उन्हें उचित कांउसिलिंग की जरूरत है। ऐसे लोगों को दवा के साथ- साथ उचित सलाह आवश्यक है।
-मानसिक विभाग में दो पाली में उपचार की सुविधा:
राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल में आउटडोर के दौरान मानसिक रोगी को उपचार की सुविधा प्रदान की जाती है। यह आउटडोर दो निर्धारित समय मसलन सुबह 9 बजे से दिन के 2 बजे और दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे तक चलता है। इन दोनों पाली में ऐसे रोगी को सबसे पहले काउंसिलिंग किया जाता है। सभी बिन्दुओं को जानने और समझने के बाद मानसिक रोगी का काउंसिलिंग किया जाता है। ऐसे रोगी और परिजन से अलग अलग बात की जाती है। इस दौरान उचित सलाह देते हुए दवा भी चिकित्सक की ओर से लिखा जाता है। ऐसे लोगों को दवा से ज्यादा काउंसिलिंग ज्यादा जरूरी है